Shri Chandra Kavach

॥ श्री चन्द्र कवचम् ॥
॥ Shri Chandra Kavach ॥

॥ ॐ गण गणपतये नमः ॥

अस्य श्रीचन्द्रकवचस्तोत्रमन्त्रस्य गौतम् ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः, श्रीचन्द्रो देवता, चन्द्रप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
समं चतुर्भुजं वन्दे केयूरमुकुटोज्ज्वलम् ।
वासुदेवस्य नयनं शङ्करस्य च भूषणम् ॥ १॥

एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम् ।
शशी पातु शिरोदेशं भालं पातु कलानिधिः ॥ २॥
चक्षुषी चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः ।
प्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबान्धवः ॥ ३॥

पातु कण्ठं च मे सोमः स्कन्धे जैवातृकस्तथा ।
करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः ॥ ४॥
हृदयं पातु मे चन्द्रो नाभिं शङ्करभूषणः ।
मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः ॥ ५॥

ऊरू तारापतिः पातु मृगाङ्को जानुनी सदा ।
अब्धिजः पातु मे जङ्घे पातु पादौ विधुः सदा ॥ ६॥
सर्वाण्यन्यानि चाङ्गानि पातु चन्द्वोऽखिलं वपुः ।
एतद्धि कवचं दिव्यं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् ।
यः पठेच्छृणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ ७॥

॥ इति श्री चन्द्र कवचं सम्पूर्णम् ॥

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