॥ आरती बृहस्पति देव की ॥
॥ Aarti Brahaspati Dev Ki ॥
जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।
छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥१॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥२॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥३॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥४॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥५॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥६॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥७॥
॥ इति आरती बृहस्पति देव सम्पूर्णम ॥
स्थान |
अमृतसर, पंजाब, भारत |
तिथि |
|
वार |
शुक्रवार |
नक्षत्र |
|
सूर्यौदय |
02 May 2025 05:48:28 |
सूर्यास्त |
02 May 2025 19:06:56 |
चंद्रोदय |
02 May 2025 09:28:39 |
चंद्रस्थ |
03 May 2025 00:30:40 |
योग |
|
धृति |
02 May 2025 05:38:28 से 03 May 2025 03:19:41 तक |
शूल |
03 May 2025 03:19:42 से 04 May 2025 01:40:41 तक |
शुभ काल |
|
अभिजीत मुहूर्त |
|
ब्रह्म मुहूर्त |
|
अशुभ काल |
|
राहू |
|
यम गण्ड |
|
कुलिक |
|
दुर्मुहूर्त |
|
वर्ज्यम् |
|